Followers

Tuesday, February 25, 2014

"दरिन्दे आ गये" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से 
   
गीत
"दरिन्दे आ गये" 
जंगलों में जब दरिन्दे आ गये।
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।

पूछते हैं वो दर-ओ-दीवार से,
हो गये महरूम सब क्यों प्यार से?
क्यों दिलों में भाव गन्दे आ गये?
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।

हो गया क्यों बे-रहम भगवान है?
क्यारियों में पनपता शैतान है?
हबस के बहशी पुलिन्दे आ गये।
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।

जुल्म की जो छाँव में हैं जी रहे,
जहर को अमृत समझकर पी रहे,
उनको भी कुछ दाँव-फन्दे आ गये।
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।

Friday, February 21, 2014

"उम्र तमाम हुई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से 
   
गीत
"...उम्र तमाम हुई" 
अपनों की रखवाली करते-करते उम्र तमाम हुई।
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।। 

सुख आये थे संग में रहने. 

डाँट-डपट कर भगा दिया, 

जाने अनजाने में हमने, 

घर में ताला लगा लिया, 

पवन-बसन्ती दरवाजों में, आने में नाकाम हुई। 

पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।। 

मन के सुमन चहकने में है, 

अभी बहुत है देर पड़ी, 

गुलशन महकाने को कलियाँ, 

कोसों-मीलों दूर खड़ीं, 

हठधर्मी के कारण सारी आशाएँ हलकान हुई। 

पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।। 

चाल-ढाल है वही पुरानी, 

हम तो उसी हाल में हैं, 

जैसे गये साल में थे, 

वैसे ही नये साल में हैं, 

गुमनामी के अंधियारों में, खुशहाली परवान हुई।

पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।

Monday, February 17, 2014

"लगे खाने-कमाने में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से 
   
गीत
"लगे खाने-कमाने में"

मुखौटे राम के पहने हुए, रावण जमाने में। 
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर, लगे खाने-कमाने में।।

दया के द्वार पर, बैठे हुए हैं लोभ के पहरे, 
मिटी सम्वेदना सारी, मनुज के स्रोत है बहरे, 
सियासत के भिखारी व्यस्त हैं कुर्सी बचाने में। 
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।

जो सदियों से नही सी पाये, अपने चाकदामन को, 
छुरा ले चल पड़े हैं हाथ वो, अब काटने तन को, 
वो रहते भव्य भवनों में, कभी थे जो विराने में। 
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।

युवक मजबूर होकर खींचते हैं रात-दिन रिक्शा, 
मगर कुत्ते और बिल्ले कर रहें हैं दूध की रक्षा, 
श्रमिक का हो रहा शोषण, धनिक के कारखाने में। 
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
 

Thursday, February 13, 2014

“आगे को बढ़ते जाओ!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से 
   
आगे को बढ़ते जाओ
उत्कर्षों के उच्च शिखर पर चढ़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।

पगदण्डी है कहीं सरल तो कहीं विरल है,
लक्ष्य नही अब दूर, सामने ही मंजिल है,
जीवन के विज्ञानशास्त्र को पढ़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।

अपने को तालाबों तक सीमित मत करना,
गंगा की लहरों-धाराओं से मत डरना,
आँधी, पानी, तूफानों से लड़ते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।

जो करता है कर्म, वही फल भी पाता है,
बिना परिश्रम नही निवाला भी आता है,
ज्ञान सिन्धु से मन की गागर भरते जाओ।
पथ आलोकित है, आगे को बढ़ते जाओ।।

Sunday, February 9, 2014

"आया मधुमास" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से 
   
मधुमास का गीत
मेरे आग्रह पर इसे मेरी मुँहबोली भतीजी 
अर्चना चावजी ने बहुत मन से गाया था!

आप भी इस गीत का रस लीजिए!
फागुन की फागुनिया लेकरआया मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकरआया मधुमास!!

धूल उड़ाती पछुआ चलतीजिउरा लेत हिलोर,
देख खेत में सरसों खिलतीनाचे मन का मोर,
फूलों में पंखुड़िया लेकरआया मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकरआया मधुमास!!

निर्मल नभ है मन चञ्चल हैसुधरा है परिवेश,
माटी के कण-कण मेंअभिनव उभरा है सन्देश,
गीतों में लावणियाँ लेकरआया मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकरआया मधुमास!!

छम-छम कानों में बजती हैं गोरी की पायलियाँ,
चहक उठी हैंमहक उठी हैंसारी सूनी गलियाँ,
होली की रागनियाँ लेकरआया मधुमास!
पेड़ों पर कोपलियाँ लेकरआया मधुमास!! 

Monday, February 3, 2014

"मस्त बसन्ती रुत आयी है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

मेरे काव्यसंग्रह "सुख का सूरज" से 
   
एक गीत
गेंहूँ झूम रहे खेतों में,
उपवन में बहार आयी है।
उतर गये हैं कोट सभी के,
मस्त बसन्ती रुत आयी है।।

मूँगफली अब नही सुहाती,
गजक-रेबड़ी नही लुभाती,
चाट-पकौड़ी मन भायी है।
मस्त बसन्ती रुत आयी है।।

चहक रही पेड़ों पर चिड़ियाँ,
महक रहीं बालाएँ-बुढ़ियाँ,
डाली-डाली गदरायी है।
मस्त बसन्ती रुत आयी है।।

दिन आये हैं प्रीत-प्रेम के,
मन भाये हैं गीत-प्रेम के,
मन में सरसों लहराई है। 
मस्त बसन्ती रुत आयी है।।